कोविड-19 के प्रहार से पस्त पड़ चुकी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए अगर सरकार ने बुनियादी उद्योगों पर विश्वास करने फैसला किया है तो यह सही और इस्तेमालशुदा फैसला है । बुनियादी ढांचे के विकास से जुड़ी परियोजनाओं को रफ्तार देकर हमेशा अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने में कामयाबी मिली है । इंफ्रा परियोजनाओं में तेजी लाने से अशिक्षित कामगारों के लिए निर्माण के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर रोजगार निकलेगा तो सीमेंट ,स्टील ,बिजली ,शहरी विकास ,रेलवे,सिंचाई ,एयरपोर्ट ,बंदरगाह जैसे बुनियादी क्षेत्रों के विकास से प्रमुख वस्तुओं का उत्पादन बढ़ने पर हर स्तर के लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा होंगे । इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि सड़क ,बिजली ,बंदरगाह जैसी व्यवस्थाओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकसित करने पर ही विदेशी निवेशकों को भारत के प्रति आकर्षित किया जा सकता है । देश मे तीसरे चरण में कोरोना महामारी फैलने के साथ गत 30 अप्रैल को नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन(एन आईपी ) ने सरकार को सन 2025 तक 5 लाख करोड़ की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए जो खाका प्रस्तुत किया है , ये उसमें विस्तार से जिक्र किया गया है । सरकार चीन से कारोबार समेटने की इक्षुक कंपनियों को भारत लाने के लिए अगर ऐसा करना चाहती है तो भी इसमें कोई हर्ज नहीं है ,हालांकि यह योजना अभी कागजी कार्रवाई के स्तर पर है जो सन 2030 और 2040 तक के समय पर आधारित है जबकि चीन से निकलने को तैयार कोई भी कंपनी इतना लंबा इंतजार नहीं करेगी । फिर भी अगर सरकार संसाधनों का बंदोबस्त कर सके तो बुनियादी ढांचा से जुड़ी योजनाओं के विकास और विस्तार पर काम शुरू करके प्रमुख वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि का रास्ता खोल देना चाहिए । यह इसलिए भी जरूरी है कि पिछले दिनों प्रमुख अंतरराष्ट्रीय रिसर्च एजेंसी डन एंड ब्रैडस्ट्रीट ने भारत की आर्थिक-औद्योगिक परिस्थितियों के गहन अध्ययन के बाद निष्कर्ष प्रस्तुत किया था कि भारत मे लॉक डाउन खुलने के बाद भी 9 प्रमुख क्षेत्रों को नार्मल होने में काफी वक्त लगेगा जिसमे सीमेंट ,स्टील और हॉस्पिटैलिटी जैसे तमाम क्षेत्र शामिल हैं तो मुझे यह निष्कर्ष बिल्कुल सही लगा था । इसलिए कि लंबे लॉक डाउन ने देश के सबसे बड़े खपतकर्ता समूह -गरीब और मिडिल क्लास की खरीद और खपत क्षमता को बुरी तरह तोड़ दिया है तो मकान बनवाना या ज्वेलरी खरीदने और हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री की सेवाएं लेने वालों की संख्या में भारी गिरावट निश्चित सी बात है । इस प्रकार की स्थिति में चीन से निकलने को तैयार उद्योग भारत आते रहेंगे ,लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं पर काम शुरू कर देने से ही अर्थव्यवस्था की पटरी से उतर चुकी गाड़ी वापिस पटरी पर आ सकेगी । इसमे दिक्कत यह है कि आमजनता की खर्च क्षमता लॉक डाउन मे ही खत्म हो चुकी है और जीडीपी तथा राजस्व संग्रह में लगातार गिरावट से सरकार के पास भी सीमित विकल्प हैं । ऐसे में इतनी उपयोगी , महत्वपूर्ण योजना को भी जमीनी हकीकत पर उतारना मुश्किल दिख रहा है ।
इंफ्रा परियोजनाओं पर फोकस